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जुस्तजू के शिकवे, आलम को बदलते हैं।
गैहराई के पन्ने, अंतर को बदलते हैं।
ज्ञान के नगमे, जीवन को सँवारते हैं।
मुशायरों के जज़्बे, महफिल को जगाते हैं।
- डॉ. हीरा
जुस्तजू के शिकवे, आलम को बदलते हैं।
गैहराई के पन्ने, अंतर को बदलते हैं।
ज्ञान के नगमे, जीवन को सँवारते हैं।
मुशायरों के जज़्बे, महफिल को जगाते हैं।
- डॉ. हीरा
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