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मुशायरा हो या कवि सम्मेलन,
आखिर तो वाह-वाह में खोते हैं।
फितरते जुनून हो या प्रेम का नशा हो,
आखिर तो अपने आप को खोते हैं।
- डॉ. हीरा
मुशायरा हो या कवि सम्मेलन,
आखिर तो वाह-वाह में खोते हैं।
फितरते जुनून हो या प्रेम का नशा हो,
आखिर तो अपने आप को खोते हैं।
- डॉ. हीरा
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