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शर्म आती है तुझसे कुछ कहने में,
कि विचारों की ये कशमकश में खेलते हैं हम।
अपने ही वजूद में खोते हैं हम,
कि तुझसे बाते छुपाते हैं हम।
जानते हैं कि तुझसे कुछ छूपा नहीं रहता,
फिर भी अपनी ही आदतों के मोहताज हैं हम।
- डॉ. हीरा
शर्म आती है तुझसे कुछ कहने में,
कि विचारों की ये कशमकश में खेलते हैं हम।
अपने ही वजूद में खोते हैं हम,
कि तुझसे बाते छुपाते हैं हम।
जानते हैं कि तुझसे कुछ छूपा नहीं रहता,
फिर भी अपनी ही आदतों के मोहताज हैं हम।
- डॉ. हीरा
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