एक ओमकार, एक ओमकार,
सर्व धर्मो का एक ही सार, एक ओमकार।
न कोई उँच नीच, न कोई गैर पराया, एक ओमकार।
न कोई वैर, न कोई दूसरा, एक ही ओमकार।
न कोई अलग, न कोई मदद, एक ही ओमकार।
न कोई रीत, न कोई अप्रीत, एक ही प्रीत, एक ही ओमकार।
न कोई नर, न कोई नार, न कोई परिवार, एक ही ओमकार।
मनुष्य न कोई जानवर, न कोई पशु, न कोई पेड़, एक ही ओमकार।
न कोई देव, न कोई दानव, न कोई जात, न कोई प्रांत, एक ही ओमकार।
न कोई लज्जित, न कोई अपमानित, एक ही ओमकार।
मुलायम चरण, गुरु चरण, गुरु वाणी ही गुरु ग्रंथ साहिब, एक ही ओमकार।
न कोई और, बस एक ही ओमकार।
- डॉ. हीरा