तुझसे आँख क्या चुरायें, जब आँखों में बसा है तू।
तुझसे अलग कैसे समझे, जब साँसों में रहता है तू।
तुझसे पहचान कैसे पाएँ, जब तेरी पहचान में हैं हम।
तेरी हर अदा को कैसे समझें, जब तेरे नशे में रहते हैं हम।
ये जीवन को कैसे संभाले, जब तुझको सौंप दिया है सब।
तुझसे प्यार कैसे जताएँ, जब तुझमें खुद को देखते हैं हम।
इन विचारो को कैसे संभाले, जब हर विचार में बसे हो तुम।
तेरी इच्छा को कैसे ठुकराएँ, जब तेरी इच्छा है हमारी अब।
- डॉ. हीरा