वाह रे प्रभु, तेरा खेल बड़ा ही निराला है।
दुःख भी दिया तो कैसा कि तुझे याद करते रहें हम।
दर्द भी दिया तो कैसा कि तुझे भूल न जाएँ हम।
क्या इस लिए कि सुख में तुम्हें भूल जाते हैं हम?
बनाया है तुमने हमें कैसा कि इतने कमज़ोर हैं हम।
परीक्षा ली भी कैसी, कि दर्द देने के बाद पूछते हो कि “क्या इसे झेल सके तुम?”
तुम तो हो सम्पूर्ण सब तरह से, तो क्या दर्द की पहचान है तुम्हें?
अधूरे होके भी हम जी रहे हैं सिर्फ तेरी याद में।
उत्तर दो प्रभु हमें कि क्या यह है शान और पहचान तेरी?
- डॉ. हीरा