बार-बार मिन्नत करने से भी तू नहीं मानता।
जागते-सोते तुझे याद करने पर भी तू नहीं आता।
फिरते विचारों को स्थिर करके भी तू नहीं जागता।
ऐ खूदा, चाहत में तुझे बसाने के बाद भी तू नहीं है हिलता।
- डॉ. हीरा
बार-बार मिन्नत करने से भी तू नहीं मानता।
जागते-सोते तुझे याद करने पर भी तू नहीं आता।
फिरते विचारों को स्थिर करके भी तू नहीं जागता।
ऐ खूदा, चाहत में तुझे बसाने के बाद भी तू नहीं है हिलता।
- डॉ. हीरा
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