अदा तेरी क्या निराली है, पहले बुलाती फिर छेड़ती है
शुरुआत करते हो प्यार से और फिर मिलने को तड़पाते,
पुकारते हो बड़े शान से फिर शांत बैंठते हो मुस्कुराके।
ये अदा कुछ अलग है, पहले खींचते हो फिर गुम हो जाते हो,
कि आया है ये बंदा अभी, डोर उसकी है तेरे हाथ में, चैन से रहते हो।
कितना भी नाचे कोई, लेकिन अब न जाए, कि छोड़े नहीं कोई तुझे तेरी आन में।
क्या नुसख़ा है तेरा, कि पहले ललकारना, फिर तड़पाना,
पहले कुछ चमत्कार और फिर बनाया हमें प्रयत्नकार,
कि पहला मकान किया है पार, अभी पूरी सीढ़ी चढ़ना है हमें लगातार,
हम क्या कहें कि ये है तेरा प्यार, हमें बनना है उसमे निरंकार।
- डॉ. हीरा