अलग नहीं कोई, अलग नहीं कोई;
कोई है ही नहीं, बस मैं ही हूँ, मैं ही हूँ।
दूसरा न है कोई, और न है कोई, बस मैं...
भिन्नता में भी मैं ही हूँ, न कोई पल या स्थल, बस मैं...
न कोई जीव, न कोई जीवन, बस मैं...
ना अवकाश, ना आरम्भ, ना प्रारंभ, बस मैं...
सुमधुर संगीत, यही है गूँज, बस मैं...
स्थिर है ये, निराकार है ये, बस मैं...
ना प्राण है, न ज्ञान है, बस मैं...
असीम हूँ, अमृत हूँ, खुद ही हूँ, बस मैं...
- डॉ. हीरा