जहाँ खुद के वजूद पे नाज़ नहीं छूटा,
वहाँ प्यार के वजूद का कहाँ है पता।
जहाँ विश्वास में अब तक दिल नहीं बसा,
वहाँ दिल के नशे का कहाँ है पता।
जहाँ प्रीत अपने आप से छूटी,
वहाँ अपने आप की पहचान कहाँ।
जहाँ जिस्मों से अपनी पहचान नहीं छूटी,
वहाँ रूह के साथ गुफतगू कहाँ।
जहाँ पेशे में ही अब तक है जान बसी,
वहाँ जान की पहचन का एलान कहाँ।
- डॉ. हीरा