दिवानगी, मुहब्बत की कुछ नसीबवालों को मिलती है।
यारी खुदा की तो उन संतों को ही नसीब होती है।
बंदगी का जश्न कुछ खुशनसीबों को ही मिलता है,
खुदा का सफर कुछ चुने लोगों को ही मिलता है।
न उसमें होश होता, न उसमें खाहिश रहती है,
सिर्फ सुफीयान अंदाज रहता है, और उसकी इबादत रहती है,
शामिल उसमें सिर्फ दिवानों की बारात होती है, जश्न की बात होती है।
परवानगी और दिले एलान मुहब्बत ही तो होती है,
रहमत खुदा की होती है, खुदा भी तो परवाना होता है।
हुकुमत न खुदा की, न बंदे की, बस महोब्बत की होती है,
एलान ए इश्क की राह ऐसी ही होती है, कुछ नसीबवालों को ही मिलती है।
- डॉ. हीरा