ईश्वर के रस्ते हमें चलना नहीं है,
ईश्वर को हमारे रस्ते पर चलाना चाहते हैं।
खुद को आरजू के दामन में छिपाकर इच्छा करते हैं,
उस इच्छा को पूरी करने के लिए ईश्वर का इस्तेमाल करते हैं।
अपने आप को ही नहीं पहचानते हैं,
जीवन की इस रेलगाड़ी में अपनी मंजिल चूक जाते हैं।
अपनी राह पर चलते-चलते धोखा खाते हैं,
खुद ही खुद से बेवफाई करते हैं।
अपने आप को बचाने के लिए, दुसरों पर इल्जाम डालते हैं,
और अपनी सफाई में अपने आप को ही गुमराह करते हैं।
- डॉ. हीरा