मुलाकाते इश्क की क्या जरूरत है,
जब हर पल आप साथ-साथ ही हैं।
आवाज़े मोहब्बत का क्या वजूद है,
जब खामोशी में आप का पूरा वजूद है।
महफिले जश्न की क्या जरूरत है,
जब पल-पल आप ही की महफिल सजी है।
खामोशी को बुंलद करने की क्या जरूरत है,
जब ब्रह्म नाद हृदय में जा बसा है।
होठों को शायरी की क्या जरूरत है,
जब तेरा ही नाम दिल पर छा चुका है।
- डॉ. हीरा