सूफी अंदाज की क्या तारीफ करें,
जब ईश्वर से प्रेम करना अभी तक आय़ा नहीं।
तेरे प्यार का दीदार कैसे करें,
जब अब तक खुद को भूलना आया नहीं।
तेरी यादों में गुज़ारा कैसे करें,
जब मोहब्बत के वह पल कभी भूला सकते नहीं।
तेरे जाने का अफ़सोस कैसे करें,
जब तू हमसे दुर कहीं गया ही नहीं।
इस सिलसिले को अब कैसे खत्म करें,
जब हर साँस में तेरे सिवा और कोई नाम नहीं।
- डॉ. हीरा