कौन अपना, कौन पराया जब ये तन ही नहीं अपना,
क्या रिश्ते क्या नाते, जब ये मन ही अपना पराया।
क्या वादे क्या इरादे, जब ये रिश्ते ही हैं पराए,
क्या हकीकत क्या मुसीबत, जब ये समय न दे इज़ाज़त।
क्या पाया, क्या खोया, जब जिंदगी नहीं एक हकीकत,
क्या समझें, क्या समझाएँ, कि समझ समझ में है मिलावट।
क्या हमेशा, क्या अंतिम, अगर खुदा में न मिल जाएँ हमेशा,
कि एक ही हकीकत, एक ही सच्चाई, खुदा ही एक अपना।
कि प्यार करें, रिश्ता जोडें, खुदा तु ही एक अपना नाता।
जन्म जन्म के फेरे लिए मिलने खुदा को, वो हकीकत,
जीवन की यही है मंजिल, ये समझ है अपनी मुहब्बत।
- डॉ. हीरा