कि ना कभी वफा हमने हमसे, तो कैसे करें दूसरो से?
कि भरमाया है हमने अपने आप को, तो दूसरों को कैसे राह दिखाएँ।
खुद से सच्चाई छुपाते रहे हम, तो दूसरों की क्या शिकवा करें।
कि अपने आप से की है हमने बेवफाई, दुसरों से क्या उम्मीद करें।
हारते रहे हम खुद खुद से कि दूसरों से कैसे हम जीत सकें।
अपनी बुराई छुपाते रहे है हम सदा, दूसरों की बुराई हम कैसे करें।
न खुद की आँख से आँख मिला सके, तो खुदा से कैसे आँख लडाएँ।
कि सच्चाई की राह पे कभी न चल सके, तो सच्चाई से हम कैसे जीएँ।
न प्यार को कभी हम पा सके, तो कैसे कहें कि हम प्यार कर सकें।
कि खुद से ही हम मरते रहे, फिर दूसरों को हम कैसे जीना सिखाएँ।
- डॉ. हीरा