मुहब्बत में लोग अक्सर गुनाह करते हैं, अपनों पे इल्जाम लगाते हैं,
प्यार करते हैं बेइन्तहां, खाहिशों की बारात लेके आते हैं,
देते भी हैं खुलेआम, पर लेने की आरजू रखते हैं,
मुहब्बत में फना होते हैं, फनाह अपने माशूक को भी करते हैं।
खुदा की राह पर निकल पड़ते हैं, खुदा से ही लड़ते झगड़ते रहते हैं।
चाहतों में अपनी इतने खो जाते हैं, खुद को भुला देते हैं
दूसरों को भुला देते हैं, अपने आप पे काबू खो देते हैं, मदहोशी या आरोपो में खो जाते है,
न ज्यादा फर्क है इनमें, जुनूनी या सूफी बनने में,
खुद को भुलाना, खुदा में भुलाना, इसे ही तो मुहब्बत कहते हैं ।
- डॉ. हीरा