हम, हम न रहे, कोई गम न रहे,
आँखों की चाह न रही, चाह ही तो मंजिल बने,
ईश्वर न हमसे दूर रहे, दूरी के सब फासले मिटे,
होश मदहोश कुछ न रहा, नाम ही तो न रहा,
इंतजार भी तो न रहा, राह ही तो कोई नहीं बचा,
अहसान की बातें नहीं रही, अब पहचान ही तो नहीं रही,
शुरूआत ना अंत रहे, समय के पर ही तो चले,
जीवन मरण न रहा, जीव में जब परमात्मा मिले।
शब्दों के भेद मिटे, जब शब्दों से चुप हो गए,
तल्लीन ये दिल हुआ, दिल भी तो नहीं बचा।
- डॉ. हीरा