महफिल सजी है आज मेरे दरबार में, कि मिलने आए हो तुम,
दावत तो दी है हमने आज, कि बंदगी करने आए हो तुम।
सजाया है यह आलम तो खास, कि सर झुकाने आए हो तुम,
फूलों की महक खिली है आज, कि गुल का रूप लेके आए हो तुम।
शायरी का मुशायरा निकला है आज, कि मेरे चाहने वाले हो तुम,
जिंदगी उभर रही है आज कि, मुहब्बत लेके आए हो तुम।
अपने आप पर काबू नहीं है आज, कि दौड़े चले आए हो तुम,
मुश्किल नहीं कुछ भी, जान खिली है आज कि मुस्कुराते आए हो तुम।
हमारी खुशनसीबी है आज कि खुले पाँव आए हो तुम,
बंदगी में नहीं कुछ बाकी है आज, कि हमारे चाहत के दीवाने हो तुम।
- कई संतों की अंतर्दृष्टि जिसे कि “परा” द्वारा प्रकट किया गया है।