भाव से करो, प्यार से करो, प्रभु की सेवा निःस्वार्थ से करो,
न ये कोई कार्य है, न कोई कर्म है, प्रभु की भक्ति, श्रद्धा से करो
धैर्य से करो, निःसंकोच करो, न कोई रीती से, पर विश्वास से करो
न बंधो कोई बंधे नीति नियम से, न दौड़ो सुधारने किसी और को
बस प्रभु से अपने आप को जोड़ो, खो जाओ उसके ध्यान में
आह्वान करो प्रभु का, की दौड़ा चला आए वो, उसके नाम से
पूजा करो जी जान से, की स्वयं प्रगट हो जाए प्रभु वहाँ पे
दिल से पुकारो उन्हें, हृदय में जगाओ उन्हें कि दूर न रहे वो तुमसे
ऐसी भक्ति करो कि न कोई भेद रहे, प्रभु और उसके सेवक में।
प्रार्थना करो ऐसी भक्ति प्राप्त हो, यही है सेवा, यही है पूजा भाव से।
- डॉ. हीरा