चले चले जा रहे थे कि मंजिल की ओर जा रहे थे,
जिंदगी हर पल बिता रहे थे कि रास्ते में खुशी से गा रहे थे।
ऐसे हाल में हम पहुँच रहे थे कि जिंदगी का मजा हम लूट रहे थे,
मंजिल भी ना रोक सकी हम को, कि आके पास हम उसे छ़ेड रहे थे।
झूम रहे अपनी मस्ती में, नाच रहे थे कि खुदा की राह पे हम निकल पड़े थे,
रोम रोम हम मदहोश हो रहे थे, अपने हाल पे हम और भी झूम रहे थे।
खुदा को भी हम बुला रहे थे कि अपनी मस्ती में शामिल होने की दावत दे रहे थे,
प्यार भरा दिल हम बाँट रहे थे कि लोगों की खुशी पे खुश हो रहे थे।
फिर क्या है मंजिल वो भूल रहे थे कि प्यार में तेरी हम झूम रहे थे,
तेरे संग संग हम गा रहे थे, राह बन गई सुहानी कि अब हम पहुँच रहे थे।
- डॉ. हीरा