हजार इच्छाऐं करते हैं हम हर पल,
कि जिंदगी यों बीतती है, बिताने वो इच्छाँऐ पल पल।
कोशिश न करें, इच्छाऐं कम न करें,
कि भूल जाते हैं क्या चाहते हैं, चाहतें बढ़े हर पल।
इस चक्रव्यू में फँसे कैसे हम हर पल,
कि आदतों से मजबूर, बंदी बने हम खुद के ही हर पल।
कहाँ से आए, कहाँ जाना है हमें, जानते नहीं हम,
पर चलते जाएँ, चलते जाएँ, कहीं तो पहुँचेंगे हम।
ये क्या जिंदगी है, ये क्या हकीकत है
कि जाना चाहते हैं प्रभु के दौर, पहुँच जाते हैं कहीं और हम।
- डॉ. हीरा