हरि हरि करते मैं चली, हरि जैसा न दुजा कोई
माखन खाने हरि आयो, मिशरी पायो हमें चित्तचोर
आँखन में हरि बसियो, और न भायो कोई
बंसुरी में हरि समायो, हम जाके बने विभोर
हरि के नाम की माला जपी, मन में आयो न और कोई
हरि दूजा न मन लागो, मन भूलो हम, हम को विसरो।
जान हमारी हरि ले गयो, हरि के रंग में हम खोई
हरि नाही, कछु और नाही, हम भी नाही, कछु नाही रह्यो
मीरा बावरी हो गई, हम भी न बाकी रहे
राधा के संग संग हम चले, हम ही तो राधा बन गई।
- डॉ. हीरा