मालिक की राह पर हम चलते रहे, मालिक की बंदगी करते रहे।
मालिक को याद करते रहे, मालिक में हम खोते रहे।
पहचान अपनी भूलते रहे, अपने आप में हम डूबते रहे।
हदय से मालिक को याद करते रहे, मालिक में जूनून पाते रहे।
हर रुप, हर रंग में मालिक को खोजते रहे, मालिक के इशारे पे चलते रहे।
स्वर्ग में तो जन्नत ढूंढते रहे, अपने अंदर ही अपने आप को मिलते रहे।
पहचान अपनी जानते गए, असीम कृपा पाते रहे।
न हम रहे, न मालिक रहे, न कोई जुदा रहा, न कुछ तो रहा।
दुनिया के लोग भी न रहे, लोगो में भी ब्रह्माण्ड देखते रहे।
- डॉ. हीरा