हो भगवान या तुम फिर कोई अनोखे इन्सान?
कहना है मुश्किल कि तू है बड़ा ही बदनाम।
भूल भी करे तु खुदा बनके और फिर कहें तुझे भोलेनाथ,
फिर सब का तू चालक बने, विधाता है तेरा नाम।
और संत कहें या फिर महापुरुष तू है लाजवाब,
कि इन्सान भी बनें और फिर भी रहे निराकार।
नाटक ही है ये तेरी दुनिया और तू उसका सूत्रधार,
कि आखिर में हम ही बने, तेरी भूल की दास्तान।
न तू खुद है पूर्ण, न हम हैं तेरे गुलाम,
कर्म से ना हमें बाँध, ऐ ईश्वर हम है तेरी भूल की पहचान।
- डॉ. हीरा