खुदा है गवाह कि जाने वो ही, हम क्या हैं उसके बिना।
चाहे हम उसकी पनहा, पर खोते रहे हम न जाने कहाँ।
कर न सके उससे पूरी वफ़ा, क्या फरियाद करें उससे भला।
चाहत की राह में मुश्किलें हजार, पर खुद ही खुद के दुश्मन सदा।
फुरसत से न हम कभी बैठे हैं साथ, फिर उससे क्या आशा रखें हम भला।
अपनी ही आरजू हम तोड़े सदा, प्रभु के दिल की बात क्या करें हम भला।
सनम को बदनाम किया सदा, पर खुद वफा न कर सके जरा।
ख़ुशी और गम में रहे ये जहान, तो ख़ामोशी का सहारा लेता हैं खुदा।
आसपास न आने देता है किसी को साथ, फिर तू क्या है, ऐ खुदा?
ये है खट्टी मीठी हमारी प्रेम कहानी का स्वाद, आओ खेलो तुम अब प्रभु के साथ एक रास।
- डॉ. हीरा