जग में कोई एक आ रहा है तो एक जा रहा है।
कोई मातम मना रहा है, तो कोई खुशियों का पैगाम लेके आया है।
कोई कर्म का ऋण चुका रहा है, तो कोई कर्म बाँध रहा है,
एक एक पल कोई खुशी मना रहा है, तो कोई गम में फँसा हुआ है।
ये पल आते हैं और गुजर भी जाते हैं, पर ये सिलसिला चालू रहता है।
न जाने कल क्या होगा, कोई भी नहीं जान सका है।
और जिंदगी में आगे चलते, कोई जिंदगी अपनी जी रहा है।
किसे क्या चाहिए और किसे क्या मिला, ये न उसे मालूम है।
बस अपने ही जाल में ये मानव और भी फँस रहा है,
न जाने कब क्या हो, एक पल यहाँ तो एक पल वहाँ, ये खेल खेल रहा है।
- डॉ. हीरा