जज़्बात हमारे तुम क्या जानो?
फितरत हमारी तुम क्या पहचानो?
नाराज़गी दिल पर छाई है, और प्रभु की याद आई है।
दीवानेपन का नशा है, और फिर भी इन्तज़ारी छायी है।
आराम में तनहाई है, और गैरों के बीच शायरी है।
जीवन में उदासी है, फिर भी दिल में एक सुकून है।
अंधेरे बादल छाये हैं, फिर भी मिलन की आरजू है।
खामोशी में शोर है, फिर भी दिल में एकांत की सियाही है।
जुगनू सा यह जीवन है, फिर भी सच्चाई की गहराई है।
आखिर क्या यह हाल है, की प्यार की छाई बेवफाई है।
- डॉ. हीरा