जिंदगी के अरमानों से रखे क्या हम अरमान,
जिंदगी के रिश्तों से क्या रखें हम अरमान।
जब दगा देता है अपना शरीर खुद, तो दूसरों से क्या रखें अरमान।
खुश रहे हम अगर अपने आप में तो दूसरों से क्या फरियाद।
जीएँ हम अपनी जिंदगानी, तो फिर जिंदगी से क्या फरियाद।
पाएँ हम खुशी, खुद की गहराइयों में, तो दुखों की क्या दास्तान।
कि सच्ची समझ ही जिंदगी में, तो फिर नासमझी की क्या दास्तान।
तेरी महफिल में जब दिल ये खोए, तो फिर गमों को क्या बसना।
लफ्ज़ जो न बयान करे, वो दिल कहे, तो बोलने का क्या फायदा?
इस जिंदगी में अगर तुझे न पाएँ, तो फिर ये जीने का क्या फायदा?
- डॉ. हीरा