क्या करूँ, क्या ना करूँ, यह समझ नहीं आता।
दुनिया में अक्सर बुद्धि का खेल, हमें यहीं पर है लाता।
बुद्धि से हल के बिना, सिर्फ दुविधा है पाया।
फिर भी अपने आप को सिर्फ चतुर ही माना।
निर्णयों के खेल में अक्सर धोका है खाया।
अपने-आप ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी है मारा।
किस्मत के खेल ने हमें है बचाया।
फिर भी कहते हैं कि किस्मत ने हमें रुलाया।
जागृति का दंभ करके, बुद्धि ने भरमाया।
प्रभु, तुझसे सद्बुद्धि माँगकर, अपना भ्रम हमने है तोड़ा।
- ડો. હીરા