निकले थे खोने तेरे प्यार में, हाय अल्लाह ये क्या हो गया?
कि दुःख दर्द के थोडे ठेश, हम तो रोने बैठ गए।
भूल गए क्या निकले थे पाने को, तो वहीं रोने लगे।
दुनिया के नशे में हम खुद रोने लगे।
जज़बातों पे नहीं है काबू, हम सोचने लगे,
पर अपनी हरकतों से बाज़ हम नहीं निकल सके।
हेरान परेशां हम अपनी महफ़िल में खो गए,
कि खुदा तेरी महफ़िल को हम भूल गए।
इल्जामों के पेशे में अपने आप को ढूंढते रहे,
खुदा तेरी बंदगी में अपने वजूद को ढूंढते रहे।
- डॉ. हीरा