पल पल जिंदगी के हर रंग बदलते हैं,
कि एक पल ही जिंदगी को मौत में बदलता है।
शरीर को फिर एक शव हम कहते हैं,
और आत्मा का नाम लेके उसे याद करते हैं।
आत्मा परमात्मा से मिले ये ख्वाहिश करते हैं,
पर यादों और आँसू से आत्मा को बाँध लेते हैं।
ये माया का जाल जो हमें सब कुछ भुला देता है,
कि आत्मा अमर हैं, अनष्ट हैं, ये भी भूल जाते हैं।
इस जाल में खेलते रहे हम युगों युगों से,
फिर भी नहीं समझते इसलिए ये खेल हर पल, नया खेलते हैं।
- डॉ. हीरा