समझाए कोई मुझे के ये बेकरारी का करार कैसे हो?
मिलन की तड़प में ये आँसू संभाले हम कैसे रहे?
कि बेचैन हैं हम अपने यार से मिलने के लिए,
न होश है न हवास है, बस तड़प में जल रहे हैं हम।
कि चुराया है हमारा दिल, अब संतोष से बैठे हैं वो,
हाले दिल जानते हैं हमारा पर संजोग से चलते हैं वो।
न हाल संभाल सकते हैं हम अपना, कि सुख से जीते हैं वो,
कहते तड़प का मिलन मीठा है सनम, पर क्या पत्थर बने बैठे हैं वो।
क्या करें हम तो क्या करें कि कर्तव्य की बेड़ी में बंधे हुए हैं हम,
प्यार करें तो कैसे करें, ऐ मेरे यार, ज़रा सिखाओ हमें भी तुम वो।
- डॉ. हीरा