सत्य की तलाश में निकले थे हम,
के हर पल सत्य बदला, सोच में पड़ गए हम।
ऐसा कैसा सत्य प्रभु, भ्रम में पड़ गए हम,
कि बदलता है ये सत्य, क्या सत्य है सोचे हम।
क्या कुछ ना है सत्य, क्या फिर असत्य है हम?
कहते ये हो तुम प्रभु कि “दृष्टि तेरी है बदलती, छोड़ सारे भ्रम,
कि बदलती है तेरी दुनिया, सत्य जो तुने बसाया उसमें है कम।
निस्वार्थ आँखों से तू देख तो सत्य पायेगा हर दम
जो बदलता नहीं, न तेरे जैसा उछलता कूदता है, वो है वहा हर दम
युगों युगों से वही आया है, मैं ही तो हूँ सत्य”।
- डॉ. हीरा