सिखाया आप ने बहुत कुछ, सीखे नहीं हम फिर भी,
कि कयामत के दौर में, हम यूँ ही फिसल रहे फिर भी।
दिया बलिदान आप ने बहुत कुछ, न जागे हम फिर भी,
कि आपके साये में हम तो सोये, न आपको पाया फिर भी।
मकसद हमने गँवाया, कि आप को गँवा दिया फिर भी,
क्या कहो आगे तुम, कि सुधरे नहीं हम फिर भी।
जिंदगी की राह में ठोकर मिली, न जागे हम माया से फिर भी,
के बुझते चिराग को माना सवेरा, खुद को मनाते रहे फिर भी।
जीने मरने की कसम खाते, पर प्यार खुद से भी न कर सके,
आखिर पाया तो क्या पाया, भूल भी न सके तुझे फिर भी।
- डॉ. हीरा