मौला की मुहोब्बत का क्या कहना,
अपने व्यवहार पे क्या नाज़ करना,
मौला ने हाथ जो पकड़ा,
अपना जीवन तो बस सँवर गया।
मौला ने जब कर्मों के अधिन रखा,
अपना चक्र तो वहीं पे अटक गया।
मालिक के बंदे हैं हम, उसे है पाना,
इच्छा उसकी चला के हमें है आगे चलना।
छोड के अपने तर्कों को आगे है जाना,
हाथ उसका पकड़कर जन्नत को है पाना।
उसी की बंदगी है अपना कर्म,
उसी की याद है अपना धर्म।
बाकी सब तो है खोखली बातें,
जन्नत के मार्ग की है ये मुलाकाते।
धर्म न लाया जा सकता है,
मौला को न बेचा जा सकता है,
मौला उसी का है जो उसमें खो जाता है,
उसी के दिल में फिर वो बस जाता है।
जन्नत न मिले मौत के बाद,
जन्नत तो है अपने विचारों के साथ।
जन्नत तो है अपने अंदर का अहसास
जन्नत तो है अपने बंदगी के पास।
- डॉ. हीरा