रात और दिन के खेल में जीवन बीतता जाता हैं।
ख्वाहिशों की जंग में बुढापा चला आता है।
ज्ञान की खोज में संघर्श उत्पन होता है।
अंधकार के दामन में आदमी अकेला होता जाता है।
गुमराह वचनों के बोल में आदमी उलझता जाता है।
ख्वाबों के मेहल में आदमी असलियत भूलता जाता है।
रोशनी की तलाश में अक्सर आदमी फिसलता जाता है।
तनहाई की होड़ में आदमी बिखरता जाता है।
दुश्मनी की सचोड़ में आदमी बिमार हो जाता है।
मंजिल की तलाश में आदमी मंजिल ही भूल जाता है।
- डॉ. हीरा